देवनारायण जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं
***(7)श्री देवनारायण भगवान *****
भगवान देवनारायण गुर्जर जाति के प्रसिद्ध लोक देवता हैं I देवनारायण का जन्म संवत968 मैं हुआ था I भगवान देवनारायण के पिता का नाम सवाईभोज ओर माता का नाम साढ़ू खटाणी था I भगवान देवनारायण का विवाह राजा जयसिंह की पुत्री की पुत्री रानी पीपलदे के साथ हुआ I गुर्जर जाति के लोग भगवान देव नारायण को विष्णु का अवतार मानते हैं I गुर्जर जाति के लोग देवनारायण भगवान के आनुयायी हैं जो “ देव जी फड़ “ गायन कर देवनारायण एवं श्री सवाई भोज महाराज की गाथा का यशोगान करते हैं I देवजी का प्रमुख पुजा स्थल आसीद (भीलवाड़ा) के पास देवमाली हैं इसके अतिरिक्त टोंक जिले मैं देवधाम जोधपुरिया भी देवनरायन भगवान का प्रसिद्ध देव स्थान हैं I देवधाम जोधपुरिया टोंक जिले के वनस्थली विध्यापीठ के मार्ग पर 8 K.M. दूर स्थित हैं I प्रतिवर्ष यहाँ देवनारायण के मंदिर मैं भाद्रपक्ष सप्तमी को भव्य मेले का आयोजन होता हैं Iदेवला डोली मै देवमाली मालासर देवडुगरी भगवान देवनारायण ने नीम को औषधि के रूप मैं महत्व दिया था। **** * *********************************** देवनारायण फड़ परम्परा Devnarayan Phad Tradition
देवनारायण का जन्म
इधर सभी बगड़ावतों का नाश हो जाने पर साडू माता हीरा दासी सहित मालासेरी की डूंगरी पर रह रही होती है। एक दिन अचानक वहाँ पर नापा ग्वाल आता है और सा माता को ७ बीसी राजकुमारों के भी मारे जाने का समाचार देता है और कहता है कि सा माता यहां से मालवा अपने पीहर वापस चलो। कहीं राजा रावजी यहां पर चढ़ाई ना कर दे। लेकिन सा माता जाने से मना कर देती है।
जब एक दिन सा माता की काली घोड़ी के बछेरा पैदा होता हैं, तब सा माता को भगवान की कही बात याद आती है कि काली घोड़ी के एक बछेरा होगा वो नीलागर घोड़ा होगा उसके बाद मैं आ
साडू माता भगवान के कहे अनुसार सुबह ब्रह्म मुहर्त में स्नान ध्यान कर भगवान का स्मरण करती है। वहीं मालासेरी की डूंगरी पर पहाड़ टूटता है और उसमें से पानी फूटता है, जल की धार बहती हुई निकलती है, पानी में कमल के फूल खिलते हैं, उन्हीं फूलों में से एक फूल में भगवान विष्णु देवनारायण के रुप में अवतरित होते हैं। माघ शुक्ला ७ सातय के दिन सम्वत ९९९ सुबह ब्रह्म मुहर्त में भगवान देवनारायण मालासेरी की डूंगरी पर अवतार (जन्म) लेते हैं। देवनारायण के टाबर (बालक) रुप को सा माता अपने गोद में लेती है, उन्हें दूध पिलाती हैं और उन्हें लाड करती हैं।
वहां से सा माता हीरा दासी और नापा ग्वाल गोठांंं आते हैं। गांव में आते ही घर-घर में घी के दिये जल जाते हैं और सुबह जब गांव भर में बालक के जन्म लेने की खबर होती है, नाई आता हैं घर-घर में बन्धनवाल बांधी जाती हैं। भगवान के जन्म लेने से घर-घर में खुशी ही खुशी हो जाती हैं। साडू माता ब्राह्मण को बुलवाती है बच्चे का नामकरण संस्कार होता है। भगवान ने कमल के फूल में अवतार लिया है, इसलिए ब्राह्मण उनका नाम देवनारायण रखते हैं। सा माता ब्राह्मण को सोने की मोहरे, कपड़े देती है, भोजन कराती है, मंगल गीत गाये जाते हैं। सूर्य पूजन का काम होने के बाद गांव की सभी महिलाएं सा माता को बधाई देने आती हैं। गांव भर में लोगों का मुंह मीठा कराया जाता है कि साडू माता की झोली में नारायण ने अवतार लिया है।******************************* देवनारायण फड़ परम्परा Devnarayan Phad Tradition
ब्राह्मणों और डायन द्वारा बालक देवनारायण को मरवाने की कोशिश
उधर रावजी के महलो में अपशगुन होने लगते हैं। रावजी को सपने आने लगते हैं कि तेरा बैर लेने के लिये साडू माता की झोली में नारायण ने जन्म लिया है। वही तेरा सर्वनाश करेगें। रावजी सपना देखकर घबरा जाते हैं, और गांव-गांव दूतियां (डायन) का पता करवाते और बुलवाते हैं। और कहते हैं कि गोठांंं गांव में एक टाबर (बालक) ने जन्म लिया है उसे खत्म करके आना है।
डायने राण से गोठांंं में आ जाती है और लम्बे-लम्बे घूघंट निकाल कर घर में घुसती है। देखती है सा माता भगवान के ध्यान में लगी हुई हैं। और दो डायन अन्दर आकर देखती है झूले में (पालकी) एक टाबर अपने पांव का अंगुठा मुंह में लेकर खेल रहा है।
उसके मुंह में से अगुंठा निकाल अपनी गोद में लेकर जहर लगा अपना स्थन देवनारायण के मुंह में दे देती हैं। नारायण उसका स्तन जोर से अपने दांतों से दबा देते हैं, जिससे उसके प्राण निकल जाते हैं। यह देख दूसरी डायनें वहां से भाग कर राण में वापस आ जाती हैं।
रावजी फिर ब्राह्मणों को बुलाते हैं और कहते हैं कि गोठांंं जाकर वहां साडू माता के यहां एक टाबर हुआ है उसे मारना है। यदि तुम उसे मार दोगे तो मैं तुम्हें आधा राज बक्शीस में दूंगा। ब्राह्मण सोचते हैं कि टाबर को मारने में क्या है, उसे तो हम मिनटों में ही मार आयेगें।
गोठांंं में आकर ब्राह्मण सा माता को कहते हैं की आपके यहां टाबर ने जन्म लिया है, उसका नाम करण संस्कार करने आऐ हैं। सा माता साधुओं का सत्कार करती है और कहती है कि आटा दाल से आप अपने लिये अपने हाथों से रसोई बनाओं और भोजन करों। ब्राह्मण कहते हैं कि सा माता आप सवा कोस दूर रतन बावड़ी से कच्चे घड़े में पानी भर लाओ तब हम रसोई बनाकर भोजन करेगें। सा माता मिट्टी का घड़ा लेकर पानी लेने चली जाती है। पीछे से ब्राह्मण घर में इधर-उधर ढूंढते हैं। उनमें से एक ब्राह्मण को एक पालने में टाबर देवनारायण सोये हुए दिखते हैं। जहां शेषनाग उनके ऊपर छतर बन बैठा हुआ है और चारों और बिच्छु ही बिच्छु घूम रहे हैं। यह देख ब्राह्मण सोचता है बालक में दूध की खुश्बू से सांप और बिच्छु आ गये हैं और उसे मार दिया है।
देवनारायण को मरा हुआ जानकर वह बाकि तीनों ब्राह्मणों को उस कमरे में बुलाता है तो भगवान विष्णु की माया से सारे ब्राह्मणों को पालने में देवनारायण के अलग-अलग रुप दिखाई देते हैं। उनमें से एक को तो पालना खाली दिखाई देता हैं। अपनी-अपनी बात सच साबित करने के लिए ब्राह्मण आपस में ही लड़ पड़ते हैं।
ब्राह्मण लड ही रहे होते हैं कि इतने में सा माता पानी लेकर आ जाती है और ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देती है। ५ सोने की मोहरे देती है। चारों ब्राह्मण वहां से बाहर आकर पांचवीं सोने की मोहर को बांटने के लिए लड़ने लग जाते हैं, एक दूसरे की चोटियां पकड़ कर गुत्थम-गुत्था करने लग जाते हैं। सा माता यह देखकर सोचतीं हैं कि इन्हें तो लगता है रावजी ने भेजा है और अन्दर जाकर अपने बच्चे को सम्भालती है।******************************** देवनारायण फड़ परम्परा Devnarayan Phad Tradition
साडू माता को बालक देवनारायण को साथ लेकर मालवा जाना
साडू माता सोचती है कि रोज कोई न कोई यहां आता है, कहीं रावजी सेना भेजकर बच्चे को भी न मरवा दे। यह सोचकर वह गोठांंं छोड़ कर मालवा जाने की तैयारी करती है। और दूसरे ही दिन सा माता अपने विश्वासपात्र भील को बुलवाती है। बच्चे का जलवा पूजन करने के पश्चात सा माता बालक देवनारायण, भील, हीरा दासी, नापा ग्वाल और अपनी गायें साथ लेकर गोठांंं छोड़ मालवा की ओर निकल पड़ती है।
साडू माता और हीरा अपने-अपने घोड़े काली घोड़ी और नीलागर घोड़े पर सवार हो बच्चे का पालना भील के सिर पर और नापा ग्वाल गायें लेकर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर निकल पड़ते हैं।
रास्ते में भील एक गोयली को देखता है तो बालक देवनारायण को वहीं एक खोल में रख कर गोयली का शिकार करने उसके पीछे भाग जाता है।
उधर सा माता और हीरा काफी आगे निकल जाते हैं। रास्ते में एक जगह एक शिकारी हिरनी का शिकार कर रहा होता है। हिरनी के साथ उसके बच्चे होते हैं। हिरनी अपने बच्चों को बचाए हुए दौड़ रही होती है। ये देख कर साडू हीरा से कहती है कि देख हीरा ये हिरनी अपने बच्चों को बचाने के लिये अपनी जान जोखिम में डाल रही है। शिकारी का तीर अगर इसे लग जायेगा तो ये मर जायेगी। ये बात हिरनी सुन लेती है और कहती है कि मैनें इसे जन्म दिया है, इसे झोलियां नहीं खिलाया है। इसलिए मैं अपनी जान देकर भी इसकी जान बचा
हिरनी की बात सुनकर साडू को अपने बच्चे की याद आती है और उसे ढूंढती हुई वो वापस पीछे की ओर आती है। वापस आकर सा माता देखती हैं कि बच्चे का पालना एक पेड़ के नीचे खोल में पड़ा हुआ है और एक शेरनी उसके ऊपर खड़ी देवनारायाण को दूध पिला रही है। सा माता यह देख अपना तीर कमान सम्हाल कर शेरनी पर निशाना साधती है। शेरनी कहती है सा माता रुक जा, तीर मत चलाना। मैं इसे दूध पिलाकर चली जा बच्चे को भूख लगी है, इसके रोने की आवाज सुनकर मैं आयी हूं। इससे पहले मैं इसे ६ बार दूध पिला चुकीं हूं। यह सातवीं बार दूध पिला रही हूं। यह बात सुनकर सा माता चौंक जाती है और पूछती है कि इससे पहले कब-कब दूध पिलाया। तो शेरनी उसे पिछले जन्मों की सारी बात बताती है।
वहीं से सा माता अपने बच्चे के साथ-साथ चलती है। चलते-चलते वो माण्डल पहुंचते हैं, जहां थोड़ी देर विश्राम करते हैं। यहां बगड़ावतों के पूर्वज मण्डल जी ने जल समाधी ली थी वहां उनकी याद में एक मीनार बनी हुई है जिसे माण्डल के मन्दारे के नाम से जाना जाता हैं।
मण्डल से आगे चलकर रास्ते में मंगरोप गांव में सब लोग विश्राम करते हैं। वहां सा माता और हीरा दासी बिलोवणा बिलोती है। वहां बची हुई छाछ गिरा देती है। कहा जाता है मंगरोप में बची हुई छाछ से बनी खड़ीया की खान आज भी है।
मंगरोप से रवाना होकर दो दिन बाद सब लोग मालवा पहुंचते हैं। सा माता अपने पीहर में पहुंचकर सबसे गले मिलती है। मालवा के राजा सा माता के पिताजी थे। मालवा में ही रहकर देवनारायण छोटे से बड़े हुए थे। वह बचपन में कई शरारते करते थे, अपने साथियो के साथ पनिहारिनों के मटके फोड़ देते थे। जब गांव वाले राजाजी को शिकायत करने आते और कहते कि आपका दोयता रोज-रोज हमारी औरतों की मट्की फोड़ देता है, रोज-रोज नया मटका कहां से लाये, तो राजाजी ने कहा कि सभी पीतल, ताम्बे का कलसा बनवा लो और खजाने से रुपया ले लो।
देवनारायण वहां के ग्वालों के साथ जंगल में बकरियां और गायें चराने जाते थे और अपनी बाल क्रिड़ाओं से सब को सताया करते थे।***********************************देवनारायण फड़ परम्परा Devnarayan Phad Tradition
भेरुजी और जोगनियाँ
देवनारायण के मामा ने उनको कह रखा था कि जंगल में सिंध बड़ की तरफ कभी मत जाना वहां चौसठ जोगणियां और बावन भैरु रहते है, तुम्हे खा जायेगें।
एक दिन देवनारायण जंगल में बकरियां चराने जाते हैं अपने साथियों को तो बहाना बना कर गांव वापस भेज देते हैं और खुद बकरियों को लेकर सिंध बड़ की ओर चले जाते हैं। सिंध बड़ पहुंचकर सभी जोगणियों को और बावन भैरु को पेड़ पर से उतार कर कहते हैं कि मैं यहां सो रहा हूं, तुम सब मेरी बकरियों को चराओ। मेरे जागने पर एक भी बकरी कम पड़ी तो मैं तुम्हारी आंतों में से निकाल लूंगा और देवनारायण कम्बल ओढ कर वहीं सिंध बड़ के नीचे सो जाते हैं। दो पहर सोने के बाद उठते हैं और सब को आवाज देकर बुलाते हैं। जोगणियां और भैरु नारायण के पांव पड़ जाते हैं और कहते है भगवान आज तो हम भूखे मर गये। नारायण पूछते हैं कि तुम यहां क्या खाते हो, अपना पेट कैसे भरते हो ? भैरु कहते है कि उड़ते हुए पकिंरदों को पकड़ कर खाते हैं। आज तो पूरा दिन आपकी बकरियां चराने में रह गये। नारायण कहते है मेरी एक बकरी को छोड़कर तुम सब बकरियों को खाजाओं। देवनारायण अपनी बकरी को गोद में उठाकर वापस आ जाते हैं। मामा पूछते है की नारायण बाकि सब बकरियां कहां है। नारायण कहते हैं मैं रास्ता भूल गया और सिंध बड़ पहुंच गया। वहां देखता हूं की बड़ के पेड़ से काले-काले भूत निकलकर सारी बकरियों को खा गऐ, मैं अपनी बकरी को लेकर भाग के आ गया। मामा कहते हैं तू वहां से जीवित वापस कैसे आ गया, तेरे को किसी भूत ने नहीं पकड़ा ?
मामाजी सोचते हैं ये जरुर कोई अवतार है। वह सा माता से देवनारायण के बारे में पूछते हैं। सा माता उन्हें सब सच बताती है। मामाजी देवनारायण के लिए चन्दन का आसन बनवाते हैं और दूधिया नीम के नीचे देवनारायण को बिठाकर उनकी पूजा करते हैं। गांव के सभी लोग उनके दर्शनों को आते हैं और देवनारायण लूले-लगड़े, कोढ़ी मनुष्यों को ठीक कर उनका कोढ़ झाड़ देते हैं। इस प्रकार से देवनारायण अपने मामा के यहां मालवा में बड़े होते हैं।
इधर छोछू भाट को भगवान देवनारायण की याद आती है कि अब भगवान नारायण ११ बरस के हो गये होगें। उन्हें मालवा जाकर बताना चाहिये कि उन्हें अपने बाप और काका का बैर लेना है। छोछू भाट अपनी माताजी डालू बाई को अपने साथ लेकर मालवा चल पड़ता हैं। ४-५ दिनों तक चलकर मालवा पहुंचते हैं। वहां जंगल में नारायण की गायें चर रही होती हैं, छोछू भाट उन्हें देखकर पहचान जाता है कि ये गायां तो बगड़ावतों की हैं। वह ग्वालों से पूछता है कि ये गायां किसकी है। ग्वाल कहते हैं की नारायण की गायें हैं। और वहां नापा ग्वाल आ जाता है। वो छोछू भाट को देखकर पहचान जाता हैं। दोनों गले मिलते हैं और छोछू भाट नारायण पास ले चलने के लिये कहता हैं।
नापा मना कर देता हैं कि तेरे को मैं नहीं ले जा क्योंकि मुझे सा माता ने मना किया है और कहा है कि छोछू भाट को मालवा में नहीं आने देना। क्योंकि भाट नारायण को बगड़ावतों के युद्ध की सारी बात बता देगा और उन्हें लड़ाई करने के लिये वापस गोठांंं ले जायेगा। जैसे बगड़ावत मारे गये वैसे ही वो नारायण को नहीं खोना चाहती हैं।
छोछू भाट ये बात सुनकर नापाजी से कहता है कि मैं मेवाड़ की धरा से नारायण के दर्शनों के लिये यहां चलकर आया हूं और यदि नारायण के दर्शन नहीं होगें तो मैं और मेरी मां यहीं जान दे देगें। यह सुनकर नापा छोछू भाट को मालवा में नारायण के घर लेकर आ जाता हैं। सा माता भाट को देखकर कहती है कि भाटजी आ गए अब वापस कब जाओगे। भाट कहता है कि भगवान नारायण से मिलकर, दो-चार दिन यहीं रहेगें।
साडू माता भाट के लिये भोजन तैयार करती हैं। जब सा माता भाट को खाना परोसती है। भाट कहता है माताजी मुझे तो थाली में खाना नहीं खाना। जिस दिन से मेरे धणी मालिक (बगड़ावत) मारे गये उसी दिन से सोगन्ध उठा रखी है कि नारायण जब तक राण के रावजी को नहीं मारेंगे तब तक पातल (पत्तो की बनी थाली) में ही भोजन कर्रूंगा।
साडू माता सोचती है कि कहीं भाट नारायण को बगड़ावतों का सारा किस्सा ना सुना दे। इसलिए वह भाट को सिंध बड़ भेजकर मारने की योजना बनाती है और कहती है कि भाटजी ऐसा करो रास्ते में नदी के किनारे एक बड़ का पेड़ है, वहीं नहा धोकर निपट कर आते समय सिंध बड़ के पत्ते तोड़ लाना और उसी में भोजन करना। मैं आपके वास्ते अच्छा भोजन तैयार करवाती हूं।
भाटजी अपना लोटा साथ लेकर सिंध बड़ की और चल पड़ते हैं। सिंध बड़ के नीचे आकर नदी के घाट पर स्नान ध्यान कर जैसे ही छोछू भाट बड़ के पत्ते तोड़ने का प्रयास करते है सिंध बड़ से ६४ जोगणियां और ५२ भैरु उतर भाट को पकड़ कर उसके टुकड़े-टुकड़े कर सभी आपस में बांट-चूंट कर खा जाते हैं।**********************************
******************************** *देवनारायण फड़ परम्परा Devnarayan Phad Tradition
देवनारायण की मालवा से वापसी
दूसरे दिन सुबह जल्दी ही गोठांं जाने के लिये तैयार होते हैं। नारायण को उनकी मामियां और मामाजी जाने से रोकते हैं कि आप छोटे से मोटे यहाँ हुये हो आपको देख कर तो हम धन्य होते हैं। आप चले जाओगे तो हमें आपके दर्शन कैसे होंगे।
तब नारायण भाट से कहते हैं कि छीपा से हमारा चित्र छपाकर लाओ फिर हम यहाँ से चलेगें। मालवा में छीपा जाती के चित्रकार से भाट देवनारायण का चित्र छपवाकर लाते हैं और नारायण को देते हैं। नारायण अपनी मामियों को अपना चित्र देते हैं और कहते हैं कि आप रोज मेरे इस चित्र को देखकर मुझे याद कर लेना।
साडू माता, हीरा दासी, नापा ग्वाला और कई ग्वाले, छोछू भाट, भाट की माँ डालू बाई और देवनारायण को देवनारायण के नानाजी और मामा-मामियाँ सभी बड़े प्यार से विदा करते हैं और कहते हैं कि वहाँ जाकर हमें भूल मत जाना।
देवनारायण के साथ मालवा से लौटते समय ६४ जोगणियां और ५२ भैरु जो उनके बाएँ पाँव में समा जाते हैं वो भी साथ आते हैं।
मालवा से लौटते समय रास्ते में धार नगरी होती है। धार नगरी में एक सूखा हुआ बाग होता है।देवला डोली देवनारायण का काफिला वहां रुकता हैं और सभीे वहीं विश्राम करते हैं। जैसे ही देवनारायण उस बाग में अपने कदम रखते हैं, बाग हरा भरा हो जाता हैं। वहीं देवनारायण विश्राम करते हैं। उस बाग में धार नगरी की राजकुमारी पीपलदे अपनी सखियों के साथ देवी के मन्दिर में पूजा करने के लिये आती है। राजकुमारी के सिर पर सींग होता है और उसके सारे शरीर में कोढ़ होता है। वह रोज इस बाग में देवी की पूजा करने आया करती थी। राजकुमारी देखती है कि ये बाग तो सूखा हुआ था, आज एक दम हरा भरा कैसे हो गया ? राजकुमारी पीपलदे देवी की पूजा कर अपनी सखियों के साथ आती है जहाँ देवनारायण के डेरे लगे हुए थे।
राजकुमारी देखती है कि ये कौन सिद्ध पुरुष इस बाग में आकर रुके हैं। इनके आने से बाग हरा भरा हो गया है। वह उनके दर्शनों के लिये आती है। जैसे ही देवनारायण की दृष्टि पीपलदे पर पडती है उसके माथे का सींग झड़ (गिर) जाता है और उसके शरीर का सारा कोढ़ भी खत्म हो जाता है और वह खूबसूरत हो जाती है।
यह चमत्कार देख कर पीपल बहुत खुश होती है और भगवान के चरणों में गिर पड़ती है और उसे पिछले जन्म की सारी बात याद आ जाती है कि नारायण के कहने से ही मैंने बगड़ावतों का संहार किया और मुण्ड माला धारण की थी और नेतु ने मुझे श्राप दिया था कि माथे पर सींग होगा, कोढीं, लूली-लंगड़ी के रुप में धार में जन्म लेगी। और भगवान विष्णु देवनारायण अवतार लेगें उनकी दृष्टि से ही मुझे श्राप से मुक्ति मिलेगी। पूर्व जन्म का आभास होने पर उसे याद आता है कि देवनारायण के साथ ही मेरा विवाह होगा। और पीपलदे जी अपनी कावरी हथनी पर सवार बधावा गीत गाती हुई राजा के दरबार में आती है ।
राजा जय सिंहदे पीपलदे से पूछते हैं कि यह सब कैसे हुआ और ये बधावा किस के लिये गा रही हो ? पीपलदे जी कहती है कि तीनों लोकों के नाथ देवनारायण ने अवतार लिया है। उन्होनें मेरा कोढ़ ठीक किया है, मेरी सारी बीमारी दूर कर दी है। उन्हीं के गीत गा रही हूं और उन्हीं के साथ मेरा विवाह करवाओ।
धार नगरी के राजा जय सिंह जी देवनारायण के जात पात का पता लगाते हैं, और कहते हैं कि ये विवाह नहीं हो सकता हैं क्योकि वो हमारे बराबर के नहीं है। पीपलदे विवाह के लिये जिद करती है और अन्न-जल छोड़ देती है। विवश हो राजा एक युक्ति निकालते हैं कि क्यों न देवनारायण को गढ़ गाजणा में भेज दःे, वहां का राक्षस राजा इन्हें मार डालेगा, अपना काम वैसे ही हो जाएगा।
राजा जय सिंह देवनारायण को पत्र लिखते हैं कि हमारी धार नगरी के किवाड़ गढ़ गाजणा का राजा राक्षस ले गया है वो वापस लेकर आओ तो पीपलदे के साथ आपका विवाह करावें। उधर डेरे से सा माता की घोड़ी को भी राक्षस चोरी कर ले गए। जब देवनारायण को सा माता की घोड़ी का पता चलता है तब देवनारायण सोचते हैं कि दोनों काम साथ ही करके आ जायेगें। देवनारायण भैरुजी को पहरे पर लगाकर नीलागर घोड़े पर सवार गढ़ गाजणे से धार के किवाड़ और सा माता की घोड़ी लेने निकल पड़ते हैं।***********************************देवनारायण फड़ परम्परा Devnarayan Phad Tradition
देवनारायण का एवं नाग कन्या से विवाह
गढ गाजणा के बाहर देवनारायण राक्षसों को मारना शुरु करते हैं। एक को मारे दो हो जाऐं, दो मारे चार हो जाऐं। राक्षसों के खून की बूंदें जमीन पर गिरते ही नये राक्षस पैदा हो जाते। ये देखकर देवनारायण अपने दायें पांव से ६४ जोगणीयां और ५२ भैरुओं को बाहर निकालकर उन्हें आदेश देते हैं कि इन राक्षसों के खून की एक भी बूंद जमीन पर नहीं गिरनी चाहिये और अब भगवान राक्षसों का संहार करना शुरु करते हैं। सभी जोगणियां और भैरु जितना भी खून होता है सब चट कर जाते हैं। इस तरह सारे राक्षस मारे जाते हैं। अन्त में दो राक्षस बचते हैं। गज दन्त और नीम दन्त जो साडू माता की घोड़ी लेकर गढ़ गाजणा की खाई में कूद जाते हैं और पाताल लोक में छुप जाते हैं।
भगवान देवनारायण भी राक्षसों के पीछे-पीछे पाताल लोक में कूदःते हैं। पाताल लोक में पृथ्वी को अपने शीश पर धारण करने वाले राजा शेष नाग आराम कर रहे हैं। भगवान के घोड़े के टापों की आवाज सुनकर शेष नाग उठते हैं। देवनारायण उनसे पूछते हैं कि दो राक्षस यहां आये हैं ?ंगा। शेष नाग कहते हैं, हां आये हैं। नारायण कहते हैं उन्हें मेरे हवाले कर दो। शेष नाग कहते हैं भगवान मेरे एक कुंवारी नाग कन्या है उसके साथ विवाह करों तो मैं राक्षसों का पता बता और फिर नारायण नाग कन्या के साथ विवाह कर लेते हैं। पहला फेरा करके चंवरी से उठ कर फटकार मारते हैं और सेली बनाकर जोगी भोपा को दे देते हैं। जिसे काली डोरी के रुप में देवनारायण के फड़ बाचने वाले भोपे अपने गले में धारण किये रहते हैं।
नाग कन्या से विवाह हो जाने के बाद शेष नाग देवनारायण को गढ़ गाजणा का रास्ता बता देते हैं। गढ़ गाजणा पहुंचकर देवनारायण दैत्यराज पर हमला करते हैं। देवनारायण से डर कर दैत्यराज के खास राक्षस गज दन्त और नीम दन्त दोनों भगवान के पांव में पड़ जाते हैं और कहते हैं कि धार के किवाड़ हम वापस दे देगें और ये सा माता की काली घोड़ी भी आपको वापस दे देतें हैं। आप हमारे राजा की क्वारी कन्या चीमटीं बाई (दैत्य कन्या) से विवाह कर लो। भगवान दूसरा विवाह चिमटीं बाई से करते हैं और दूसरा फेरा कर चवंरी से उठ फटकार मारते हैं और लकड़ी बना कर जोगी भोपा को दे देते हैं जो देवनारायण की फड़ का परिचत देते वक्त भोपा दृष्य दिखाने के काम में लेता है।***********************************देवनारायण फड़ परम्परा Devnarayan Phad Tradition
देवनारायण एवं पीपलादे का विवाह
नाग कन्या और दैत्य कन्या से विवाह करने के बाद भगवान देवनारायण गढ़ गाजणा से धार के किवाड़ गज दन्त और नीम दन्त के सिर पर लदवाकर धार नगरी में भेज देते हैं। धार नगरी के बाहर दोनों राक्षस दरवाजे वापस लगा देते हैं। सुबह धार नगरी की प्रजा जागती हैं और देखती है कि नगरी के किवाड़ वापस आ गये हैं। ये समाचार राजा जय सिंह को मिलता है। राजा देखने आते हैं और उन्हें पूरा विश्वास हो जाता है कि देवनारायण जरुर कोई अवतारी पुरुष है। इसके साथ अपनी कन्या का विवाह कर देना चाहिये।
राजा जय सिंह जी ४ पण्डितों के साथ देवनारायण के लिए लग्न-नारियल (सोने का) भिजवाते हैं। चारों पण्डित जी नारियल लेकर छोछू भाट के पास आते हैं। छोछू भाट उन ४ ब्राह्मणों (पण्डित) को माता साडू के पास लेकर जाता हैं और ब्राह्मण माता साडू को नारियल स्वीकार करने को कहते हैं। देवनारायण उस वक्त सोये हुए होते हैं। साडू माता उन्हें उठाकर कहती है कि धार के राजा के यहां से ४ ब्राह्मण आपके लिये राजकुमारी पीपलदे का लगन लेकर आये हैं। देवनारायण कहते है माताजी पहले कन्या को देख आओ, कैसी है ? बिना देखे मेरा ब्याह करवा रही हो। माता साडू छोछू भाट को लड़की देखने भेजती है। भाटजी पीपलदे को देखकर आते हैं। माताजी को बताते हैं कि राजकुमारी जी तो बहुत सुन्दर है, पूरी तरह से नारायण के लायक है।
धार के राजाजी के यहां शहनाईयां बजने लग जाती है, नगाड़े बजते और पीपलदे और नारायण के डोरा (डोलडा) बांधते हैं। मंगल गीत गाये जाते हैं। देवनारायण और पीपलदे की शादी हो जाती है। मगर नारायण ३ फेरे ही खाते हैं बाकि के आधे फेरे मंगरोप में आकर खाते हैं।************************************देवनारायण फड़ परम्परा Devnarayan Phad Tradition
देवनारायण एवं सोखिया पीर जी को साथ लेकर देवनारायण धार नगरी से अपने डेरे हटाकर रवाना होते हैं। धार से चलने के बाद आगे आकर वे लोग सोनीयाना के बीहड़ (जंगल) में आकर विश्राम करते हैं। भगवान देवनारायण तो पांच पहर की नींद में सो जाते हैं।
सोनियाना के जंगल में शिव-पार्वती बैठे होते हैं। पार्वती जी शिवजी से पूछती है भगवान ये कौन है। शिवजी बताते हैं ये विष्णु अवतार देवनारायण हैं, तो पार्वती कहती है कि अगर ये स्वयं भगवान के अवतार हैं तो मैं इनकी परीक्षा लेती हूं।
देवनारायण के काफिले को देखकर पा
***(7)श्री देवनारायण भगवान *****
भगवान देवनारायण गुर्जर जाति के प्रसिद्ध लोक देवता हैं I देवनारायण का जन्म संवत968 मैं हुआ था I भगवान देवनारायण के पिता का नाम सवाईभोज ओर माता का नाम साढ़ू खटाणी था I भगवान देवनारायण का विवाह राजा जयसिंह की पुत्री की पुत्री रानी पीपलदे के साथ हुआ I गुर्जर जाति के लोग भगवान देव नारायण को विष्णु का अवतार मानते हैं I गुर्जर जाति के लोग देवनारायण भगवान के आनुयायी हैं जो “ देव जी फड़ “ गायन कर देवनारायण एवं श्री सवाई भोज महाराज की गाथा का यशोगान करते हैं I देवजी का प्रमुख पुजा स्थल आसीद (भीलवाड़ा) के पास देवमाली हैं इसके अतिरिक्त टोंक जिले मैं देवधाम जोधपुरिया भी देवनरायन भगवान का प्रसिद्ध देव स्थान हैं I देवधाम जोधपुरिया टोंक जिले के वनस्थली विध्यापीठ के मार्ग पर 8 K.M. दूर स्थित हैं I प्रतिवर्ष यहाँ देवनारायण के मंदिर मैं भाद्रपक्ष सप्तमी को भव्य मेले का आयोजन होता हैं Iदेवला डोली मै देवमाली मालासर देवडुगरी भगवान देवनारायण ने नीम को औषधि के रूप मैं महत्व दिया था। **** * *********************************** देवनारायण फड़ परम्परा Devnarayan Phad Tradition
देवनारायण का जन्म
इधर सभी बगड़ावतों का नाश हो जाने पर साडू माता हीरा दासी सहित मालासेरी की डूंगरी पर रह रही होती है। एक दिन अचानक वहाँ पर नापा ग्वाल आता है और सा माता को ७ बीसी राजकुमारों के भी मारे जाने का समाचार देता है और कहता है कि सा माता यहां से मालवा अपने पीहर वापस चलो। कहीं राजा रावजी यहां पर चढ़ाई ना कर दे। लेकिन सा माता जाने से मना कर देती है।
जब एक दिन सा माता की काली घोड़ी के बछेरा पैदा होता हैं, तब सा माता को भगवान की कही बात याद आती है कि काली घोड़ी के एक बछेरा होगा वो नीलागर घोड़ा होगा उसके बाद मैं आ
साडू माता भगवान के कहे अनुसार सुबह ब्रह्म मुहर्त में स्नान ध्यान कर भगवान का स्मरण करती है। वहीं मालासेरी की डूंगरी पर पहाड़ टूटता है और उसमें से पानी फूटता है, जल की धार बहती हुई निकलती है, पानी में कमल के फूल खिलते हैं, उन्हीं फूलों में से एक फूल में भगवान विष्णु देवनारायण के रुप में अवतरित होते हैं। माघ शुक्ला ७ सातय के दिन सम्वत ९९९ सुबह ब्रह्म मुहर्त में भगवान देवनारायण मालासेरी की डूंगरी पर अवतार (जन्म) लेते हैं। देवनारायण के टाबर (बालक) रुप को सा माता अपने गोद में लेती है, उन्हें दूध पिलाती हैं और उन्हें लाड करती हैं।
वहां से सा माता हीरा दासी और नापा ग्वाल गोठांंं आते हैं। गांव में आते ही घर-घर में घी के दिये जल जाते हैं और सुबह जब गांव भर में बालक के जन्म लेने की खबर होती है, नाई आता हैं घर-घर में बन्धनवाल बांधी जाती हैं। भगवान के जन्म लेने से घर-घर में खुशी ही खुशी हो जाती हैं। साडू माता ब्राह्मण को बुलवाती है बच्चे का नामकरण संस्कार होता है। भगवान ने कमल के फूल में अवतार लिया है, इसलिए ब्राह्मण उनका नाम देवनारायण रखते हैं। सा माता ब्राह्मण को सोने की मोहरे, कपड़े देती है, भोजन कराती है, मंगल गीत गाये जाते हैं। सूर्य पूजन का काम होने के बाद गांव की सभी महिलाएं सा माता को बधाई देने आती हैं। गांव भर में लोगों का मुंह मीठा कराया जाता है कि साडू माता की झोली में नारायण ने अवतार लिया है।******************************* देवनारायण फड़ परम्परा Devnarayan Phad Tradition
ब्राह्मणों और डायन द्वारा बालक देवनारायण को मरवाने की कोशिश
उधर रावजी के महलो में अपशगुन होने लगते हैं। रावजी को सपने आने लगते हैं कि तेरा बैर लेने के लिये साडू माता की झोली में नारायण ने जन्म लिया है। वही तेरा सर्वनाश करेगें। रावजी सपना देखकर घबरा जाते हैं, और गांव-गांव दूतियां (डायन) का पता करवाते और बुलवाते हैं। और कहते हैं कि गोठांंं गांव में एक टाबर (बालक) ने जन्म लिया है उसे खत्म करके आना है।
डायने राण से गोठांंं में आ जाती है और लम्बे-लम्बे घूघंट निकाल कर घर में घुसती है। देखती है सा माता भगवान के ध्यान में लगी हुई हैं। और दो डायन अन्दर आकर देखती है झूले में (पालकी) एक टाबर अपने पांव का अंगुठा मुंह में लेकर खेल रहा है।
उसके मुंह में से अगुंठा निकाल अपनी गोद में लेकर जहर लगा अपना स्थन देवनारायण के मुंह में दे देती हैं। नारायण उसका स्तन जोर से अपने दांतों से दबा देते हैं, जिससे उसके प्राण निकल जाते हैं। यह देख दूसरी डायनें वहां से भाग कर राण में वापस आ जाती हैं।
रावजी फिर ब्राह्मणों को बुलाते हैं और कहते हैं कि गोठांंं जाकर वहां साडू माता के यहां एक टाबर हुआ है उसे मारना है। यदि तुम उसे मार दोगे तो मैं तुम्हें आधा राज बक्शीस में दूंगा। ब्राह्मण सोचते हैं कि टाबर को मारने में क्या है, उसे तो हम मिनटों में ही मार आयेगें।
गोठांंं में आकर ब्राह्मण सा माता को कहते हैं की आपके यहां टाबर ने जन्म लिया है, उसका नाम करण संस्कार करने आऐ हैं। सा माता साधुओं का सत्कार करती है और कहती है कि आटा दाल से आप अपने लिये अपने हाथों से रसोई बनाओं और भोजन करों। ब्राह्मण कहते हैं कि सा माता आप सवा कोस दूर रतन बावड़ी से कच्चे घड़े में पानी भर लाओ तब हम रसोई बनाकर भोजन करेगें। सा माता मिट्टी का घड़ा लेकर पानी लेने चली जाती है। पीछे से ब्राह्मण घर में इधर-उधर ढूंढते हैं। उनमें से एक ब्राह्मण को एक पालने में टाबर देवनारायण सोये हुए दिखते हैं। जहां शेषनाग उनके ऊपर छतर बन बैठा हुआ है और चारों और बिच्छु ही बिच्छु घूम रहे हैं। यह देख ब्राह्मण सोचता है बालक में दूध की खुश्बू से सांप और बिच्छु आ गये हैं और उसे मार दिया है।
देवनारायण को मरा हुआ जानकर वह बाकि तीनों ब्राह्मणों को उस कमरे में बुलाता है तो भगवान विष्णु की माया से सारे ब्राह्मणों को पालने में देवनारायण के अलग-अलग रुप दिखाई देते हैं। उनमें से एक को तो पालना खाली दिखाई देता हैं। अपनी-अपनी बात सच साबित करने के लिए ब्राह्मण आपस में ही लड़ पड़ते हैं।
ब्राह्मण लड ही रहे होते हैं कि इतने में सा माता पानी लेकर आ जाती है और ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देती है। ५ सोने की मोहरे देती है। चारों ब्राह्मण वहां से बाहर आकर पांचवीं सोने की मोहर को बांटने के लिए लड़ने लग जाते हैं, एक दूसरे की चोटियां पकड़ कर गुत्थम-गुत्था करने लग जाते हैं। सा माता यह देखकर सोचतीं हैं कि इन्हें तो लगता है रावजी ने भेजा है और अन्दर जाकर अपने बच्चे को सम्भालती है।******************************** देवनारायण फड़ परम्परा Devnarayan Phad Tradition
साडू माता को बालक देवनारायण को साथ लेकर मालवा जाना
साडू माता सोचती है कि रोज कोई न कोई यहां आता है, कहीं रावजी सेना भेजकर बच्चे को भी न मरवा दे। यह सोचकर वह गोठांंं छोड़ कर मालवा जाने की तैयारी करती है। और दूसरे ही दिन सा माता अपने विश्वासपात्र भील को बुलवाती है। बच्चे का जलवा पूजन करने के पश्चात सा माता बालक देवनारायण, भील, हीरा दासी, नापा ग्वाल और अपनी गायें साथ लेकर गोठांंं छोड़ मालवा की ओर निकल पड़ती है।
साडू माता और हीरा अपने-अपने घोड़े काली घोड़ी और नीलागर घोड़े पर सवार हो बच्चे का पालना भील के सिर पर और नापा ग्वाल गायें लेकर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर निकल पड़ते हैं।
रास्ते में भील एक गोयली को देखता है तो बालक देवनारायण को वहीं एक खोल में रख कर गोयली का शिकार करने उसके पीछे भाग जाता है।
उधर सा माता और हीरा काफी आगे निकल जाते हैं। रास्ते में एक जगह एक शिकारी हिरनी का शिकार कर रहा होता है। हिरनी के साथ उसके बच्चे होते हैं। हिरनी अपने बच्चों को बचाए हुए दौड़ रही होती है। ये देख कर साडू हीरा से कहती है कि देख हीरा ये हिरनी अपने बच्चों को बचाने के लिये अपनी जान जोखिम में डाल रही है। शिकारी का तीर अगर इसे लग जायेगा तो ये मर जायेगी। ये बात हिरनी सुन लेती है और कहती है कि मैनें इसे जन्म दिया है, इसे झोलियां नहीं खिलाया है। इसलिए मैं अपनी जान देकर भी इसकी जान बचा
हिरनी की बात सुनकर साडू को अपने बच्चे की याद आती है और उसे ढूंढती हुई वो वापस पीछे की ओर आती है। वापस आकर सा माता देखती हैं कि बच्चे का पालना एक पेड़ के नीचे खोल में पड़ा हुआ है और एक शेरनी उसके ऊपर खड़ी देवनारायाण को दूध पिला रही है। सा माता यह देख अपना तीर कमान सम्हाल कर शेरनी पर निशाना साधती है। शेरनी कहती है सा माता रुक जा, तीर मत चलाना। मैं इसे दूध पिलाकर चली जा बच्चे को भूख लगी है, इसके रोने की आवाज सुनकर मैं आयी हूं। इससे पहले मैं इसे ६ बार दूध पिला चुकीं हूं। यह सातवीं बार दूध पिला रही हूं। यह बात सुनकर सा माता चौंक जाती है और पूछती है कि इससे पहले कब-कब दूध पिलाया। तो शेरनी उसे पिछले जन्मों की सारी बात बताती है।
वहीं से सा माता अपने बच्चे के साथ-साथ चलती है। चलते-चलते वो माण्डल पहुंचते हैं, जहां थोड़ी देर विश्राम करते हैं। यहां बगड़ावतों के पूर्वज मण्डल जी ने जल समाधी ली थी वहां उनकी याद में एक मीनार बनी हुई है जिसे माण्डल के मन्दारे के नाम से जाना जाता हैं।
मण्डल से आगे चलकर रास्ते में मंगरोप गांव में सब लोग विश्राम करते हैं। वहां सा माता और हीरा दासी बिलोवणा बिलोती है। वहां बची हुई छाछ गिरा देती है। कहा जाता है मंगरोप में बची हुई छाछ से बनी खड़ीया की खान आज भी है।
मंगरोप से रवाना होकर दो दिन बाद सब लोग मालवा पहुंचते हैं। सा माता अपने पीहर में पहुंचकर सबसे गले मिलती है। मालवा के राजा सा माता के पिताजी थे। मालवा में ही रहकर देवनारायण छोटे से बड़े हुए थे। वह बचपन में कई शरारते करते थे, अपने साथियो के साथ पनिहारिनों के मटके फोड़ देते थे। जब गांव वाले राजाजी को शिकायत करने आते और कहते कि आपका दोयता रोज-रोज हमारी औरतों की मट्की फोड़ देता है, रोज-रोज नया मटका कहां से लाये, तो राजाजी ने कहा कि सभी पीतल, ताम्बे का कलसा बनवा लो और खजाने से रुपया ले लो।
देवनारायण वहां के ग्वालों के साथ जंगल में बकरियां और गायें चराने जाते थे और अपनी बाल क्रिड़ाओं से सब को सताया करते थे।***********************************देवनारायण फड़ परम्परा Devnarayan Phad Tradition
भेरुजी और जोगनियाँ
देवनारायण के मामा ने उनको कह रखा था कि जंगल में सिंध बड़ की तरफ कभी मत जाना वहां चौसठ जोगणियां और बावन भैरु रहते है, तुम्हे खा जायेगें।
एक दिन देवनारायण जंगल में बकरियां चराने जाते हैं अपने साथियों को तो बहाना बना कर गांव वापस भेज देते हैं और खुद बकरियों को लेकर सिंध बड़ की ओर चले जाते हैं। सिंध बड़ पहुंचकर सभी जोगणियों को और बावन भैरु को पेड़ पर से उतार कर कहते हैं कि मैं यहां सो रहा हूं, तुम सब मेरी बकरियों को चराओ। मेरे जागने पर एक भी बकरी कम पड़ी तो मैं तुम्हारी आंतों में से निकाल लूंगा और देवनारायण कम्बल ओढ कर वहीं सिंध बड़ के नीचे सो जाते हैं। दो पहर सोने के बाद उठते हैं और सब को आवाज देकर बुलाते हैं। जोगणियां और भैरु नारायण के पांव पड़ जाते हैं और कहते है भगवान आज तो हम भूखे मर गये। नारायण पूछते हैं कि तुम यहां क्या खाते हो, अपना पेट कैसे भरते हो ? भैरु कहते है कि उड़ते हुए पकिंरदों को पकड़ कर खाते हैं। आज तो पूरा दिन आपकी बकरियां चराने में रह गये। नारायण कहते है मेरी एक बकरी को छोड़कर तुम सब बकरियों को खाजाओं। देवनारायण अपनी बकरी को गोद में उठाकर वापस आ जाते हैं। मामा पूछते है की नारायण बाकि सब बकरियां कहां है। नारायण कहते हैं मैं रास्ता भूल गया और सिंध बड़ पहुंच गया। वहां देखता हूं की बड़ के पेड़ से काले-काले भूत निकलकर सारी बकरियों को खा गऐ, मैं अपनी बकरी को लेकर भाग के आ गया। मामा कहते हैं तू वहां से जीवित वापस कैसे आ गया, तेरे को किसी भूत ने नहीं पकड़ा ?
मामाजी सोचते हैं ये जरुर कोई अवतार है। वह सा माता से देवनारायण के बारे में पूछते हैं। सा माता उन्हें सब सच बताती है। मामाजी देवनारायण के लिए चन्दन का आसन बनवाते हैं और दूधिया नीम के नीचे देवनारायण को बिठाकर उनकी पूजा करते हैं। गांव के सभी लोग उनके दर्शनों को आते हैं और देवनारायण लूले-लगड़े, कोढ़ी मनुष्यों को ठीक कर उनका कोढ़ झाड़ देते हैं। इस प्रकार से देवनारायण अपने मामा के यहां मालवा में बड़े होते हैं।
इधर छोछू भाट को भगवान देवनारायण की याद आती है कि अब भगवान नारायण ११ बरस के हो गये होगें। उन्हें मालवा जाकर बताना चाहिये कि उन्हें अपने बाप और काका का बैर लेना है। छोछू भाट अपनी माताजी डालू बाई को अपने साथ लेकर मालवा चल पड़ता हैं। ४-५ दिनों तक चलकर मालवा पहुंचते हैं। वहां जंगल में नारायण की गायें चर रही होती हैं, छोछू भाट उन्हें देखकर पहचान जाता है कि ये गायां तो बगड़ावतों की हैं। वह ग्वालों से पूछता है कि ये गायां किसकी है। ग्वाल कहते हैं की नारायण की गायें हैं। और वहां नापा ग्वाल आ जाता है। वो छोछू भाट को देखकर पहचान जाता हैं। दोनों गले मिलते हैं और छोछू भाट नारायण पास ले चलने के लिये कहता हैं।
नापा मना कर देता हैं कि तेरे को मैं नहीं ले जा क्योंकि मुझे सा माता ने मना किया है और कहा है कि छोछू भाट को मालवा में नहीं आने देना। क्योंकि भाट नारायण को बगड़ावतों के युद्ध की सारी बात बता देगा और उन्हें लड़ाई करने के लिये वापस गोठांंं ले जायेगा। जैसे बगड़ावत मारे गये वैसे ही वो नारायण को नहीं खोना चाहती हैं।
छोछू भाट ये बात सुनकर नापाजी से कहता है कि मैं मेवाड़ की धरा से नारायण के दर्शनों के लिये यहां चलकर आया हूं और यदि नारायण के दर्शन नहीं होगें तो मैं और मेरी मां यहीं जान दे देगें। यह सुनकर नापा छोछू भाट को मालवा में नारायण के घर लेकर आ जाता हैं। सा माता भाट को देखकर कहती है कि भाटजी आ गए अब वापस कब जाओगे। भाट कहता है कि भगवान नारायण से मिलकर, दो-चार दिन यहीं रहेगें।
साडू माता भाट के लिये भोजन तैयार करती हैं। जब सा माता भाट को खाना परोसती है। भाट कहता है माताजी मुझे तो थाली में खाना नहीं खाना। जिस दिन से मेरे धणी मालिक (बगड़ावत) मारे गये उसी दिन से सोगन्ध उठा रखी है कि नारायण जब तक राण के रावजी को नहीं मारेंगे तब तक पातल (पत्तो की बनी थाली) में ही भोजन कर्रूंगा।
साडू माता सोचती है कि कहीं भाट नारायण को बगड़ावतों का सारा किस्सा ना सुना दे। इसलिए वह भाट को सिंध बड़ भेजकर मारने की योजना बनाती है और कहती है कि भाटजी ऐसा करो रास्ते में नदी के किनारे एक बड़ का पेड़ है, वहीं नहा धोकर निपट कर आते समय सिंध बड़ के पत्ते तोड़ लाना और उसी में भोजन करना। मैं आपके वास्ते अच्छा भोजन तैयार करवाती हूं।
भाटजी अपना लोटा साथ लेकर सिंध बड़ की और चल पड़ते हैं। सिंध बड़ के नीचे आकर नदी के घाट पर स्नान ध्यान कर जैसे ही छोछू भाट बड़ के पत्ते तोड़ने का प्रयास करते है सिंध बड़ से ६४ जोगणियां और ५२ भैरु उतर भाट को पकड़ कर उसके टुकड़े-टुकड़े कर सभी आपस में बांट-चूंट कर खा जाते हैं।**********************************
******************************** *देवनारायण फड़ परम्परा Devnarayan Phad Tradition
देवनारायण की मालवा से वापसी
दूसरे दिन सुबह जल्दी ही गोठांं जाने के लिये तैयार होते हैं। नारायण को उनकी मामियां और मामाजी जाने से रोकते हैं कि आप छोटे से मोटे यहाँ हुये हो आपको देख कर तो हम धन्य होते हैं। आप चले जाओगे तो हमें आपके दर्शन कैसे होंगे।
तब नारायण भाट से कहते हैं कि छीपा से हमारा चित्र छपाकर लाओ फिर हम यहाँ से चलेगें। मालवा में छीपा जाती के चित्रकार से भाट देवनारायण का चित्र छपवाकर लाते हैं और नारायण को देते हैं। नारायण अपनी मामियों को अपना चित्र देते हैं और कहते हैं कि आप रोज मेरे इस चित्र को देखकर मुझे याद कर लेना।
साडू माता, हीरा दासी, नापा ग्वाला और कई ग्वाले, छोछू भाट, भाट की माँ डालू बाई और देवनारायण को देवनारायण के नानाजी और मामा-मामियाँ सभी बड़े प्यार से विदा करते हैं और कहते हैं कि वहाँ जाकर हमें भूल मत जाना।
देवनारायण के साथ मालवा से लौटते समय ६४ जोगणियां और ५२ भैरु जो उनके बाएँ पाँव में समा जाते हैं वो भी साथ आते हैं।
मालवा से लौटते समय रास्ते में धार नगरी होती है। धार नगरी में एक सूखा हुआ बाग होता है।देवला डोली देवनारायण का काफिला वहां रुकता हैं और सभीे वहीं विश्राम करते हैं। जैसे ही देवनारायण उस बाग में अपने कदम रखते हैं, बाग हरा भरा हो जाता हैं। वहीं देवनारायण विश्राम करते हैं। उस बाग में धार नगरी की राजकुमारी पीपलदे अपनी सखियों के साथ देवी के मन्दिर में पूजा करने के लिये आती है। राजकुमारी के सिर पर सींग होता है और उसके सारे शरीर में कोढ़ होता है। वह रोज इस बाग में देवी की पूजा करने आया करती थी। राजकुमारी देखती है कि ये बाग तो सूखा हुआ था, आज एक दम हरा भरा कैसे हो गया ? राजकुमारी पीपलदे देवी की पूजा कर अपनी सखियों के साथ आती है जहाँ देवनारायण के डेरे लगे हुए थे।
राजकुमारी देखती है कि ये कौन सिद्ध पुरुष इस बाग में आकर रुके हैं। इनके आने से बाग हरा भरा हो गया है। वह उनके दर्शनों के लिये आती है। जैसे ही देवनारायण की दृष्टि पीपलदे पर पडती है उसके माथे का सींग झड़ (गिर) जाता है और उसके शरीर का सारा कोढ़ भी खत्म हो जाता है और वह खूबसूरत हो जाती है।
यह चमत्कार देख कर पीपल बहुत खुश होती है और भगवान के चरणों में गिर पड़ती है और उसे पिछले जन्म की सारी बात याद आ जाती है कि नारायण के कहने से ही मैंने बगड़ावतों का संहार किया और मुण्ड माला धारण की थी और नेतु ने मुझे श्राप दिया था कि माथे पर सींग होगा, कोढीं, लूली-लंगड़ी के रुप में धार में जन्म लेगी। और भगवान विष्णु देवनारायण अवतार लेगें उनकी दृष्टि से ही मुझे श्राप से मुक्ति मिलेगी। पूर्व जन्म का आभास होने पर उसे याद आता है कि देवनारायण के साथ ही मेरा विवाह होगा। और पीपलदे जी अपनी कावरी हथनी पर सवार बधावा गीत गाती हुई राजा के दरबार में आती है ।
राजा जय सिंहदे पीपलदे से पूछते हैं कि यह सब कैसे हुआ और ये बधावा किस के लिये गा रही हो ? पीपलदे जी कहती है कि तीनों लोकों के नाथ देवनारायण ने अवतार लिया है। उन्होनें मेरा कोढ़ ठीक किया है, मेरी सारी बीमारी दूर कर दी है। उन्हीं के गीत गा रही हूं और उन्हीं के साथ मेरा विवाह करवाओ।
धार नगरी के राजा जय सिंह जी देवनारायण के जात पात का पता लगाते हैं, और कहते हैं कि ये विवाह नहीं हो सकता हैं क्योकि वो हमारे बराबर के नहीं है। पीपलदे विवाह के लिये जिद करती है और अन्न-जल छोड़ देती है। विवश हो राजा एक युक्ति निकालते हैं कि क्यों न देवनारायण को गढ़ गाजणा में भेज दःे, वहां का राक्षस राजा इन्हें मार डालेगा, अपना काम वैसे ही हो जाएगा।
राजा जय सिंह देवनारायण को पत्र लिखते हैं कि हमारी धार नगरी के किवाड़ गढ़ गाजणा का राजा राक्षस ले गया है वो वापस लेकर आओ तो पीपलदे के साथ आपका विवाह करावें। उधर डेरे से सा माता की घोड़ी को भी राक्षस चोरी कर ले गए। जब देवनारायण को सा माता की घोड़ी का पता चलता है तब देवनारायण सोचते हैं कि दोनों काम साथ ही करके आ जायेगें। देवनारायण भैरुजी को पहरे पर लगाकर नीलागर घोड़े पर सवार गढ़ गाजणे से धार के किवाड़ और सा माता की घोड़ी लेने निकल पड़ते हैं।***********************************देवनारायण फड़ परम्परा Devnarayan Phad Tradition
देवनारायण का एवं नाग कन्या से विवाह
गढ गाजणा के बाहर देवनारायण राक्षसों को मारना शुरु करते हैं। एक को मारे दो हो जाऐं, दो मारे चार हो जाऐं। राक्षसों के खून की बूंदें जमीन पर गिरते ही नये राक्षस पैदा हो जाते। ये देखकर देवनारायण अपने दायें पांव से ६४ जोगणीयां और ५२ भैरुओं को बाहर निकालकर उन्हें आदेश देते हैं कि इन राक्षसों के खून की एक भी बूंद जमीन पर नहीं गिरनी चाहिये और अब भगवान राक्षसों का संहार करना शुरु करते हैं। सभी जोगणियां और भैरु जितना भी खून होता है सब चट कर जाते हैं। इस तरह सारे राक्षस मारे जाते हैं। अन्त में दो राक्षस बचते हैं। गज दन्त और नीम दन्त जो साडू माता की घोड़ी लेकर गढ़ गाजणा की खाई में कूद जाते हैं और पाताल लोक में छुप जाते हैं।
भगवान देवनारायण भी राक्षसों के पीछे-पीछे पाताल लोक में कूदःते हैं। पाताल लोक में पृथ्वी को अपने शीश पर धारण करने वाले राजा शेष नाग आराम कर रहे हैं। भगवान के घोड़े के टापों की आवाज सुनकर शेष नाग उठते हैं। देवनारायण उनसे पूछते हैं कि दो राक्षस यहां आये हैं ?ंगा। शेष नाग कहते हैं, हां आये हैं। नारायण कहते हैं उन्हें मेरे हवाले कर दो। शेष नाग कहते हैं भगवान मेरे एक कुंवारी नाग कन्या है उसके साथ विवाह करों तो मैं राक्षसों का पता बता और फिर नारायण नाग कन्या के साथ विवाह कर लेते हैं। पहला फेरा करके चंवरी से उठ कर फटकार मारते हैं और सेली बनाकर जोगी भोपा को दे देते हैं। जिसे काली डोरी के रुप में देवनारायण के फड़ बाचने वाले भोपे अपने गले में धारण किये रहते हैं।
नाग कन्या से विवाह हो जाने के बाद शेष नाग देवनारायण को गढ़ गाजणा का रास्ता बता देते हैं। गढ़ गाजणा पहुंचकर देवनारायण दैत्यराज पर हमला करते हैं। देवनारायण से डर कर दैत्यराज के खास राक्षस गज दन्त और नीम दन्त दोनों भगवान के पांव में पड़ जाते हैं और कहते हैं कि धार के किवाड़ हम वापस दे देगें और ये सा माता की काली घोड़ी भी आपको वापस दे देतें हैं। आप हमारे राजा की क्वारी कन्या चीमटीं बाई (दैत्य कन्या) से विवाह कर लो। भगवान दूसरा विवाह चिमटीं बाई से करते हैं और दूसरा फेरा कर चवंरी से उठ फटकार मारते हैं और लकड़ी बना कर जोगी भोपा को दे देते हैं जो देवनारायण की फड़ का परिचत देते वक्त भोपा दृष्य दिखाने के काम में लेता है।***********************************देवनारायण फड़ परम्परा Devnarayan Phad Tradition
देवनारायण एवं पीपलादे का विवाह
नाग कन्या और दैत्य कन्या से विवाह करने के बाद भगवान देवनारायण गढ़ गाजणा से धार के किवाड़ गज दन्त और नीम दन्त के सिर पर लदवाकर धार नगरी में भेज देते हैं। धार नगरी के बाहर दोनों राक्षस दरवाजे वापस लगा देते हैं। सुबह धार नगरी की प्रजा जागती हैं और देखती है कि नगरी के किवाड़ वापस आ गये हैं। ये समाचार राजा जय सिंह को मिलता है। राजा देखने आते हैं और उन्हें पूरा विश्वास हो जाता है कि देवनारायण जरुर कोई अवतारी पुरुष है। इसके साथ अपनी कन्या का विवाह कर देना चाहिये।
राजा जय सिंह जी ४ पण्डितों के साथ देवनारायण के लिए लग्न-नारियल (सोने का) भिजवाते हैं। चारों पण्डित जी नारियल लेकर छोछू भाट के पास आते हैं। छोछू भाट उन ४ ब्राह्मणों (पण्डित) को माता साडू के पास लेकर जाता हैं और ब्राह्मण माता साडू को नारियल स्वीकार करने को कहते हैं। देवनारायण उस वक्त सोये हुए होते हैं। साडू माता उन्हें उठाकर कहती है कि धार के राजा के यहां से ४ ब्राह्मण आपके लिये राजकुमारी पीपलदे का लगन लेकर आये हैं। देवनारायण कहते है माताजी पहले कन्या को देख आओ, कैसी है ? बिना देखे मेरा ब्याह करवा रही हो। माता साडू छोछू भाट को लड़की देखने भेजती है। भाटजी पीपलदे को देखकर आते हैं। माताजी को बताते हैं कि राजकुमारी जी तो बहुत सुन्दर है, पूरी तरह से नारायण के लायक है।
धार के राजाजी के यहां शहनाईयां बजने लग जाती है, नगाड़े बजते और पीपलदे और नारायण के डोरा (डोलडा) बांधते हैं। मंगल गीत गाये जाते हैं। देवनारायण और पीपलदे की शादी हो जाती है। मगर नारायण ३ फेरे ही खाते हैं बाकि के आधे फेरे मंगरोप में आकर खाते हैं।************************************देवनारायण फड़ परम्परा Devnarayan Phad Tradition
देवनारायण एवं सोखिया पीर जी को साथ लेकर देवनारायण धार नगरी से अपने डेरे हटाकर रवाना होते हैं। धार से चलने के बाद आगे आकर वे लोग सोनीयाना के बीहड़ (जंगल) में आकर विश्राम करते हैं। भगवान देवनारायण तो पांच पहर की नींद में सो जाते हैं।
सोनियाना के जंगल में शिव-पार्वती बैठे होते हैं। पार्वती जी शिवजी से पूछती है भगवान ये कौन है। शिवजी बताते हैं ये विष्णु अवतार देवनारायण हैं, तो पार्वती कहती है कि अगर ये स्वयं भगवान के अवतार हैं तो मैं इनकी परीक्षा लेती हूं।
देवनारायण के काफिले को देखकर पा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें